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चित्तौड़गढ़ & जैन धर्म - 7. शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ

Published on Friday, January 19, 2018 by Dr A L Jain | Modified on Monday, February 19, 2018

चित्तौड़ में नौकोठा के महल के चैक में गड़े हुए स्तम्भ में खुदी हुई प्रशस्ति

संवत् 1365 वर्षे वैशाख सुदि 5 गुरौ श्रीएकलिंगहराराधनपाशुपताचार्य हारीतराशि क्षत्रिय गुहिलपुत्र-हलप्व सहोदर्य व श्री चूडामणीय भर्तृपुर-स्थानोन्वद्विजाप्तविभागातुच्छेश्री भर्तृपुरीयगच्छे श्री चूडामणि भर्तृपुरे श्री गुहिल पुत्र विहार आदीशप्रतिपत्तौ श्रीचित्रकूट मेदपाटाधिपति श्रीतेजः सिंहराज्या श्रीजयतल्लदेव्या श्रीश्यामपाश्र्वनाथ वसही स्वश्रेय से कारिता ।। तद्वाज्ञी वसही पाश्रात्यभागे गच्छीय श्रीप्रद्युम्नसूरिभ्यो महाराजकुल गुहिलपुत्रवंशतिलक श्रीसमरसिंहने वतुराघाटोपेतायदानयुता च मठभूमि घाटाः पूर्वोत्तरयो-ज्ज्र्योतिः साढलस्यावासः दक्षिणस्यां श्रीसोमनाथः।। पश्रिवमायां श्रीभर्तृपुरगच्छीय चतुर्विशति जिनदेवालयो यज्ञी वसहिका व ।। अन्यच्चायदानीनि।। श्रीचित्रकूट तलहट्टिका मंडपिकायां च उ. द्रम्मा 24 तथा उत्तरायनेघृतकर्ष 14 तथा तैल-कर्ष 6 आघाट मंडपिकायां द्रम्मा 36 षोहरमंडपिकायाः द्रम्मा 32 सज्जनपुर-मंडपिकायां द्रं. 34 अमून्यायदानानि दत्तानि।। श्रीएकलिंगशिवसेवनतत्पर-श्रीद्दारीतराशिवंशसंभूतमहेश्रवरराशिस्तच्छिष्य श्री शिवराशि गोड़जातीयद्विजदिवाकर वंशो.वव्यासर सुतज्जयोति: साढलतथाच विप्रदेल्हणसुतभट्टसाढा तत्पुत्र-द्वारभट्ट स्वीमटस्तद् दातृभीमासहितेन एभिर्मिलिखा श्रीभर्तृपुर्रायगच्छे-कारि।। 6।।

चित्तौड़ के पुल के नीचे तलहटी के दरवाजे से आठवें कोठे की प्रशस्ति

ऊँ ।। संवत् 1324 वर्षे इह श्रीचित्रकूट महादुर्ग तलहट्टिकायां पवित्रश्री चैत्रगणव्योमांणतरणि स्वप्रपितामहप्रभु श्री हेमप्रभुसूरि निवेशितस्य सुविहित शिरोमणि सिद्धान्तसिन्धु भट्टारकश्रीपद्यचसूरि प्रतिष्ठित सयास्य देवश्रीमहावीरचेतस्य प्रतिभासमुद्र कवि कुंजर पितृतुल्यातुल्य वात्सल्यपूजय श्री रत्नप्रभसूरिणामा देशात् राजभगवन्नारायणमहाराज श्री तेजः सिंह देवकल्याणविजयि राजा विजयमानप्रधान राज-राजप ुत्र कांगा पुत्र परनारी साहो

चित्तौड़ के किले पर श्रृंगारचंवरी के पश्चिम द्वार में घुसते हुए दाहिनी बाजू के एक स्तम्भ में खुदी हुई प्रशस्ति

संवत् 1505 वर्षे राणा श्री लाखा पुत्र राणा श्री मोकलननंदन राणा श्री कुम्भकर्ण कोशव्यापरिणा साह कोला पुत्र रत्नण्ही भंडारी श्रीबेला केन भार्याल्हणदेवी जयमान भार्या रतनोदव पुत्र भं. मूधराज भं. धनराज भं. कुरपालदि पुत्र युतेन श्री अष्टापदा श्री श्री श्री शांतिनाथमूलनायकः प्रासादः कारितः श्रीजिनसागरसूरि प्रतिष्ठितः श्री भोजाकेनंदत् श्रीजिनसुन्दरसूरि प्रसादतः शुभं भवंतु पं. उदयशीलगणिनं नमिति

ग्राम जावर में पाश्र्वनाथ के मन्दिर में एक स्तम्भ पर खुदी हुई प्रशस्ति

संवत् 1498 वर्षे पोष शुद 5 यजाधिराज श्रीमोकलदेवविजय राज्ये प्राग्वाट सान्नाना भा. फनीसुत सा. रतन भा. लाषूपुत्रेण श्री शत्रुंजय गिरितारार्बुद-जीरापल्ली चित्रकूटादि तीर्थयात्रा कृता श्री संघमुख्य सा. धणपालेन भा. ह्मंसूपुत्र सा. हाजाभोजाधानावधू देऊनाऊ धाईणेत्र देवा नरसिंगपुत्रिका पूनी पूरी मरगद चमकू प्रभृति कुटुंब परिवृत्तेन श्रीशांतिनाथप्रासादः कारितः प्रतिष्ठितः स्तयापक्षे श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टपूर्वावलदिननायक गछनायक निरूपममहिमा-निधान युगप्रधान समान श्रीश्रीश्रीसोमसुंदरसूरिभिः भट्टारक पुरंदर श्री मुनि सुंदरसूरि श्री जयचन्द्रसूरि श्री रत्नशेखरसूरि श्री उदयनन्दिसूरि श्री लक्ष्मीसागरसूरि महोपाध्याय श्री सत्यशेखरगणि श्री सूरसुन्दरगणि श्री सोमदेवगणि कलंदिका कुमुदिनीसोमोदय पं. सोमोदवगणि प्रमुख प्रतिदिनाधिकाधिकोदयमान शिष्यवर्गों चिरं विजयतां श्री शांतिनाथचैत्य कारिता,

भगवान श्रीशान्तिनाथ जी एवं श्रीमहावीर जी के मन्दिर में लगे शिलालेख

  1. श्री चित्रकुटस्था श्री बिम्ब प्रवेश प्रशस्तिः ! अजित वीर वि भुं सुमति सदा भविक पदम विकास दिवाकरम। प्रबल मोह विनाशक मर्हताम त्रितयमादिकर प्रेणतोअस्यम एत बिम्बकाय मध्ये श्री मूलनायक महावीर बिम्बम्। विक्रम सम्वत् 1555 श्री जिनदत्त प्रतिष्ठितम। वाम पाश्र्वस्थ सुमतिाथ बिम्बम् 1198 वर्ष कनक सुन्दरसूरि प्रतिष्ठितम्। दक्षिण पाश्र्वस्थम जिननाथ बिम्बंतु 1110 वर्षें भट्टारक श्रीगुणसन्दरसूरि प्रतिष्ठतम् वर्तते
  2. स्वस्ति श्री वीरजिन प्रणम्य्मेवाड़ देसा चित्तौड़ नगरे श्री 1008 श्रीशान्तिनाथ महाराज के मन्दिर का जीर्णोद्धार महाराजाधिराज महाराणा जी श्री भूपालसिंह जी, विजयराज्येन, श्री जैन श्वेताम्बर प्रभु पूजक जीर्णोद्धारक कमेटी की तरफ से कराया इसमें किसी भी सम्प्रदाय के साधु-साध्वी नहीं उतर सकेंगे। श्री वीर सम्वत 2459 विक्रम सम्वत् 1990

चैत्य परिपाटियाँ

मांडू के श्रेष्ठी झांझण ने 13 वीं शताब्दी में चित्तौड़ यात्रा करके चैत्य परिपाटी की रचना की थी, जो अब प्राप्य नहीं है। जैन श्रेष्ठ एवं गहन शोधार्थी री अगरचन्द जी नाहटा ने 3 चैत्यपरिपाटियाँ सम्पादित करके प्रकाशित करवाई थी। पहली वि. स. 1573 की है इसमें 32 जैन मंदिरों का विस्तार से वर्णन है। मंदिरों में उपलब्ध मूर्तियों एवं निर्माताओं के संबंध में भी विवरण है। मूर्तियों की संख्या में संभवतः मंडोवर के अलंकरण की मूर्तियों को भी गिना गया है।

  1. यांसनाथ मंदिर 80 प्रतिमाओं सहित
  2. ईश्वरशाह द्वारा निर्मित आदिनाथ मंदिर 54 प्रतिमाओं सहित
  3. सोमनाथ चिन्तामणि पाश्र्व 350 प्रतिमाओं सहित
  4. चंद्रप्रभ स्वामी का चैमुखा मंदिर
  5. आदिनाथ मंदिर 35 प्रतिमाओं सहित
  6. पाश्र्वनाथ मंदिर 35 प्रतिमाओं सहित
  7. सुमतिनाथ मंदिर 13 प्रतिमाओं सहित
  8. वीर विहार
  9. पाश्र्वनाथ मंदिर
  10. सुपाश्र्वनाथ मंदिर
  11. जैन कीर्तिस्तम्भ
  12. पाश्र्वनाथ मंदिर 900 प्रतिमाओं सहित
  13. अद्बुद ‘आदिनाथ’ मंदिर
  14. चंद्रप्रभ ‘मलधारगच्छीय’ मंदिर
  15. सुमतिनाथ मंदिर ‘सुराणा रामचन्द्रकृत
  16. शान्तिनाथ ‘खरतर बसही
  17. पाश्र्वनाथ 515 प्रतिमाओं और शत्रुंजय और गिरनार पट्टों सहित
  18. सुमतिनाथ ‘बरहडिया धनराज का’
  19. शांतिनाथ डाग जिनदत्त का’
  20. शांति ‘लीलाबसही’
  21. मुनिसुव्रत ‘नागौरिका’
  22. शीतल ‘आंचलगच्छीय’
  23. मुनिसुव्रत ‘नारणीवालागच्छ’
  24. सीमंधर ‘पल्ल्ीवाल गच्छ’
  25. पाश्र्वनाथ ‘चत्रावाला गच्छ’
  26. सुमतिनाथ ‘पूर्णिमा गच्छ
  27. आदिनाथ चैमुखा ‘873’ या 877 मूर्तियों सहित
  28. मुनि सुव्रत ‘गौमुख’
  29. शांतिनाथ ‘चैमुखा’ बेला भंडारी कृत 225 प्रतिमाओं सहित इसमें शीतलनाथ, आदिनाथ और पाश्र्वनाथ की प्रतिमाएँ थी
  30. ‘अजित सरणा बसही’
  31. शांतिनाथ ‘शा. डूंगरसी द्वारा निर्मित
  32. संभवनाथ मंदिर

दूसरी चैत्य परिपाटी बेले रचित है जो संभवतः 1590 वि सं के आसपास की है, इसमें कुल 36 पद्य है। चित्तौड़ के मंदिरों की नामावली पद्य 6 से है इनमें से कई मंदिर बहादुरशाह के आक्रमण के समय नष्ट हो गये थे। ऐसा प्रतीत होता है कि बेले ने रामपोल से दक्षिणवर्ती भाग से मंदिरों के दर्शन किये हों। इसमें सबसे पहले सीमंधर स्वामी का वर्णन है जो पहली परिपाटी में सं. 24 पर है। इसके बाद मुनि सुव्रत, ‘नाणावाला गच्छ’ शीतलनाथ आंचल गच्छ, मुनि सुव्रत नागौरिका, आदिनाथ मालवी, श्रृंगार चंवरी, अजित सरणाबसही, शांतिनााि डूंगरसी, सोम चिन्तामणि पाश्र्वनाथ, सुमतिनाथ, आदिनाथ, संभवनाथ, जैन कीर्तिस्तम्भ, वीरविहार, सुपाश्र्वनाथ लोलावसही, सुमतिनाथ आदि। इसमें भी मंदिरों के नाम अधिकांश मिलते है।

तीसरी चैत्य परिपाटी - बड़ोदा के ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट की है, जिसमें अहमदाबाद से यात्रियों के संघ का चित्तौड़ जाकर लौटने का वर्णन है। इन्होंने सबसे पहले जैन कीर्तिस्तंभ के दर्शन किये। इसके बाद आदिनाथ चैमुखा मालवी मंदिर, फिर श्रृंगार चंवरी, सरणा वसही, शांतिनाथ, डूंगरी, अद्बुद आदिनाथ, चन्द्रप्रभ मलधार गच्छीय, शीतलनाथ, मुनि सुव्रत, नाणावालागच्छ, सुपाश्र्वनाथ, संभवतः पाश्र्वनाथ चैत्रावलगच्छ, शांतिनाथ, खरतरगच्छ, सुमतिनाथ पूर्णिमा गच्छ, चन्द्रप्रभ? सुमतिनाथ, बरडिया धनराज का, सीमंधर पल्लीवाल सुमति? संभवनाथ आदि के दर्शन किये।

<< 6. चित्तौड़ में रचित जैन साहित्य8. रोचक एवं ऐतिहासिक तथ्य >>




Chapters (चित्तौड़गढ़ & जैन धर्म)

  1. जैन धर्म का गौरव स्थल
  2. जैन श्रद्धालु
  3. पूजित जिन मंदिर
  4. महान जैन आचार्य
  5. दानवीर जैन श्रेष्ठी
  6. चित्तौड़ में रचित जैन साहित्य
  7. शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ
  8. रोचक एवं ऐतिहासिक तथ्य
  9. परिशिष्ट
  10. चित्तौड़गढ़ दुर्ग का गाइड मेप
  11. भक्तिमती मीराबाई
  12. जैन धर्मशाला
  13. श्री केसरियाजी जैन गुरूकुल

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